Saturday, April 6, 2019

A Gazal In Which You May Find Shades Of Your Own Sentiments

आज मैं आपके साथ एक ग़ज़ल शेयर करना चाहती हूं  जो मैंने २,३ साल पहले पढ़ी  थी.शायर हैं शकील उद्दीन. तो लीजिये आप भी इसका आनंद उठाइये:--

गमे  हयात उठाना हंसी मज़ाक नहीं.'
फिर उसपे हंस के दिखाना हंसी मज़ाक नहीं.

बदलते देखी है तकदीर  हमने शाहों की,
किसी के दिल को दुखाना हंसी मज़ाक नहीं.

मैं अपने हाल पे खुद कहकहे लगता हूँ,
मज़ाक खुद का उड़ाना हंसी मज़ाक नहीं.

खुद अपने ख्वाब बिखरने का खौफ रहता है,
किसी को ख्वाब दिखाना हंसी मज़ाक नहीं.

तस्सुरात वो चेहरे के पढ़ने लगता है,
बहाना उससे बनाना हंसी मज़ाक नहीं.

न जाने कितने मराहिल किये हैं तय लेकिन,
तुम्हारी बज़्म में आना हंसी मज़ाक  नहीं.

This gazal was penned by Shakeel Uddien.

8 comments :

  1. ज़िंदगी को बारीकी से समझती और समझाती ग़ज़ल !

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  2. Very beautiful, very true, life is not as simple as it seems. Thanks for sharing this.

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  3. बहुत खूब इंदु जी ! बहुत अच्छी ग़ज़ल है यह । शेयर करने के लिए आभार आपका ।

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    1. Thank you Jitendra,I am glad it clicked with you.It is indeed simple and true.

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